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Sunday, April 14, 2013

किसी को अपना बनाने की चाहत में घर से निकले 
बस इतनी सी ख्वाहिश ने जिंदगी भर का मुसाफिर बना दिया ....।।।। 8.4.2013


दो पल की जिंदगी दी उस खुदा ने 
एक पल हंसी में बीता ,दूसरा ख़ुशी से बीत रहा है ....।।।। THANK GOD 13.4.2013


कहने को तो बहुत जिंदादिल हैं हम पर अपनों की याद रुला देती है कभी कभी ....।।।।

Photo: कहने को तो बहुत जिंदादिल हैं हम 
पर अपनों की याद रुला देती है कभी कभी ....।।।।
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Sangeet Kaur Kukreja Gurneet Kukreja Rashmeet Kukreja Mandip Gill Mini Tuteja Harpal Kukreja Tarandeep Kukreja Parneet Tuteja Navdeep Tuteja Harjeet Tuteja
दोस्ती के इस शहर में हम वो शख्स हैं जो 
आंसूं खरीदते हैं अपनी मुस्कराहट बेच कर ....।।।।


Photo: दोस्ती के इस शहर में हम वो शख्स हैं जो 
आंसूं खरीदते हैं अपनी मुस्कराहट बेच कर ....।।।।
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Nishat Raja Siddqui Govind Sharma Ravi Sehgal Sunita Murarka Jagjeet Kaur Ashok Kelde Gagan Anand Shashikant Mandloi Abhinav Chaurey

Friday, April 12, 2013

दर्द इतना है जिंदगी में कि 
अब धड़कने भी घबरा गयी हैं ....



Monday, May 30, 2011

दर्पण बनकर जियो.........

जीवन को, चेतना को, दर्पण बना लो। दर्पण सदा रिक्त होता है। उस पर स्थायी तस्वीर नहीं बनती। प्रतिबिम्ब हटते ही दर्पण शून्य हो जाता है। तुम्हें भी दर्पण की तरह व्यवहार करना है। सुबह सोकर उठो तो नई जिन्दगी लेकर उठो। जो कल तक तुम्हारा दुश्मन था, आज जब उससे मिले तो मित्र की तरह मिलो, ऐसे मिलो जैसे तुम्हारे बचपन का मित्र मिल गया हो। तुम्हारा अपना आत्मीय मिल गया हो। कल जो हुआ था, उसे आज याद मत करो। हर सुबह नया जीवन होता है, लेकिन मन नया नहीं होता, और मैं तुम्हें सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं कि मन भी नया होना चाहिए। तो मन को दर्पण बना लो। अभी तो तुम कैमरे की तरह जी रहे हो। कैमरे की फिल्म प्रतिबिम्ब को पकड़ लेती है, छोड़ती नहीं है। तो समझे, कैमरा नहीं, दर्पण बनकर जियो, और दर्पण शब्द ही कह रहा है – दर्प–ण अर्थात् जिसमें दर्प (अहंकार) नहीं है, वही दर्पण बन सकता है।

जंगल राज ..........

एक नन्हा मेमना

और उसकी माँ बकरी,

जा रहे थे जंगल में

राह थी संकरी।

अचानक सामने से आ गया एक शेर,

लेकिन अब तो

हो चुकी थी बहुत देर।

भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,

बकरी और मेमने की हालत खस्ता।

उधर शेर के कदम धरती नापें,

इधर ये दोनों थर-थर कापें।

अब तो शेर आ गया एकदम सामने,

बकरी लगी जैसे-जैसे

बच्चे को थामने।

छिटककर बोला बकरी का बच्चा-

शेर अंकल!

क्या तुम हमें खा जाओगे

एकदम कच्चा?

शेर मुस्कुराया,

उसने अपना भारी पंजा

मेमने के सिर पर फिराया।

बोला-

हे बकरी - कुल गौरव,

आयुष्मान भव!

दीर्घायु भव!

चिरायु भव!

कर कलरव!

हो उत्सव!

अच्छा बकरी मैया नमस्ते!

इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,

बकरी हैरान-

चुनाव आनेवाला है।