Thursday, April 28, 2011
मक्खीचूस, कंजूस, उदार और दाता की परिभाषा...
जो न खुद खाता है, न दूसरा को खिलाता है, वह मक्खीचूस है। जो खुद तो खाता है, लेकिन दूसरों को नहीं खिलाता है, वह कंजूस है। जो स्वयं भी खाता है, दूसरों को भी खिलाता है, वह उदार है तथा जो स्वयं न खाकर दूसरों को खिला देता है, वह दाता है। दाता दुनिया का सबसे समझदार इंसान है और कंजूस सबसे बड़ा मूर्ख है। वह धन का मालिक नहीं, गुलाम होता है। मैं धन का विरोधी नहीं हूँ। मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ कि धन का जो स्थान है, उसे उसी स्थान पर रखना चाहिए। जूता पांवों के लिए आवश्यक चीज है। कांटे न चुभें, कंकर न चुभें, चोट न लगे, पांव न जले , इसके लिए जूता होना चाहिए, मगर जूते पांवों के लिए हैं, सिर पर रखकर घूमने के लिए नहीं। यदि कोई जूता सिर पर रखकर घूमने लगे तो आप उसे क्या कहेंगे? मूर्ख! और धन जो जीवन का साधन है उसे साध्य मान लिया जाए तो क्या समझदारी होगी? और कुछ लोग धन को जीवन से भी महत्वपूर्ण मानते हैं।
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