धन मंजिल नहीं, मार्ग है। धन तो हाथ का मैल है। उस पर जीवन न्यौछावर करना निरी मूर्खता है।धन का जीवन में वही स्थान होना चाहिए, जो शरीर में जूतों का होता है। और धर्म का वह स्थान होना चाहिए, जो शरीर में टोपी का होता है। धर्म सिर की टोपी है और धन पांव का जूता। यही सूत्र मानकर धन का संग्रह करना और धर्म का पालन करना।
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