Thursday, April 28, 2011
धर्म क्या है......
धर्म कोई पूजा की वस्तु नहीं, वह तो जीने की कला है। धर्म वह है जो जीया जाता है। जो जीया नहीं जाता, वह धर्म नहीं है। धर्म का अर्थ जीवन की समग्रता को धारण करना है। धर्म आनंद की यात्रा हैं धर्म की यात्रा स्वयं को ही तय करनी पड़ती है। अपने ही पांवों से, अपने ही भावों से। दूसरों की बैसाखियां काम नहीं आयेंगी, दूसरों के कंधे काम नहीं आयेंगे। लोग हेमकुन्ट साहिब की यात्रा करने जाते हैं, डोलियां कर लेते हैं। डोलियों पर बैठकर यात्रा करते हैं, लेकिन धर्म की यात्रा, मोक्ष की यात्रा किसी डोली पर नहीं हो सकती। किसी के कंधों पर चढ़कर जीवन की मंजिल तक पहुँच पाना असंभव है। कंधों पर तो मुर्दे को लाया जाता है, वह भी मरघट तक! दूसरों के कंधों पर चढ़कर मरघट से आगे जाया भी तो नहीं जा सकता।
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