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Friday, April 29, 2011

परिवार बचा नहीं है.....

जरा याद कीजिए, पिछली बार कब हमसे किसी ने अपनी मां, पिता, पत्नी, बेटे या बेटी के साथ बैठकर बेतरती की गप मारी थी. कब हममें से किसी ने ये जानने की कोशिश की थी कि वो बहन, जो अपने घर में अपने पारिवारिक उलझनों के बीच राखी की डोर हमें बांधती है, उसका घर कैसे चल रहा है. वो भाई, जिसकी बीवी काम के सिलसिले में किसी दूसरे शहर कुछ दिनों के लिए गई है, उसके बच्चे कैसे घर पर अपना काम कर रहे हैं. फोन पर ही बेटे की आवाज सुनकर दिनभर खुशी से गाने गुनगुनाने वाली मां से कब हममें से किसी ने ये पूछा कि पैरों के जोड़ का दर्द ज्यादा तो नहीं. हम ये सब नहीं पूछते. हां, हम ये जरूर कहते हैं कि आज के जमाने में परिवार बचा नहीं है.

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