Pages

Monday, May 30, 2011

सही मार्केटिंग हो जाए तो लोग मौत से भी प्यार करेंगे............

यह जीवन बहुत थोड़ा है।ना जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए।

यहां मौत की लंबी लाइन लगी है। वह तो हमारी बारी नहीं आई है इस कारण हम जिंदा हैं, वरना यह जिंदगी भी एक भ्रम है।

एक आदमी कहीं जा रहा था और गिर गया। लोगों ने उसे देखा, वह मर गया था। कुछ लोग बोले- अरे यह तो मर गया।

वह तो गिरा जमी पर, लोग कहते हैं मर गया। मरा नहीं है, यह बेचारा सफर में था, आज अपने घर गया।

जन्म और मृत्यु दोनों भ्रामक शब्द हैं। व्यवहार में इनका गंभीरता से उपयोग होता है।

जैसे सूर्य का उदय और अस्त व्यवहार में दिखता है। यदि कोई सूर्य से पूछे तो वह कहेगा - मैं तो सदैव से हूं।

न उदय हुआ हूं, न अस्त। भारत में उदय हूं तो अमेरिका में अस्त। यह भ्रम है।

इसी तरह जीवन और मृत्यु व्यवहार में तो सच लगते हैं, पर हैं भ्रम।

जीव केवल शरीर को छोड़ता है, फिर उसकी मृत्यु कैसी?

जीव मरता है तो व्यवहार में हम रोते हैं उसकी मृत्यु पर।

उस समय वह कहीं और जन्म ले रहा होता है और वहां लोग खुशी मना रहे होते हैं।

सही तरीके से मृत्यु का विज्ञापन करें तो उससे भी मिलने की इच्छा होगी।

यदि मौत की सही मार्केटिंग हो जाए तो लोग मौत से प्यार करने लगेंगे।

मौत का सामना करने का आसान तरीका है जरा मुस्कराइए.............

No comments:

Post a Comment