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Monday, May 30, 2011

पीड़ादायक स्मृतियों को भुला देना बुद्धिमानी है.....

पीड़ादायक स्मृतियों को भुला देना बुद्धिमानी है और अच्छी बातों को याद रखना समझदारी,

लेकिन यदि अच्छी बातें सही समय पर आचरण में न उतारी गईं तो ये भी बोझ बन जाएंगी।

कुछ घटनाएं जीवन में ऐसी होती रहती हैं कि जिन्हें यदि नहीं भुलाया गया तो वे हमें मानसिक उधेड़-बुन में पटक देती हैं

और एक घटना फिर कई विपरीत घटनाओं को जन्म देने वाली बन जाती है।

इसलिए अप्रिय प्रसंगों को तत्काल विस्मृत करें। इनको सतत याद रखने का नाम है चिंता।

चिंता करने वाला आदमी कुछ समय बाद अवसाद में जरूर डूबेगा।

प्रिय और अच्छी स्थितियां सदुपयोग के लिए होती हैं। अपने शुभ कर्मो को एक जगह अपनी स्मृति में स्टॉक की तरह रखना चाहिए

और उनका उपयोग भविष्य में करते रहना चाहिए।

चार तरीके से अपने शुभ कर्मो को दूसरों के प्रति उपयोग करें।

पहला, अपने से छोटी उम्र के लोगों से अपने शुभ कर्म जोड़ें, इससे स्नेह बढ़ेगा।

दूसरा,अपने दोस्त, पति-पत्नी से शुभ कर्म जुड़कर प्रेम का रूप ले लेते हैं।

तीसरा तरीका है अपने से बड़े यानी माता-पिता, गुरु तथा वृद्धजन के प्रति जुड़े हुए शुभ कर्म श्रद्धा का रूप ले लेते हैं।

जैसे ही हमारे शुभ कर्म चौथे चरण में परमात्मा के प्रति जुड़ते हैं, बस फिर इसे भक्ति कहा जाएगा।

इसलिए अशुभ, अप्रिय और अनुचित घटे हुए को भूल जाएं,

शुभ को याद रखते हुए उनका इन चार चरणों में सदुपयोग करें। इसका सीधा असर आपके स्वास्थ्य पर पड़ेगा।

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