सभी चाहते हैं कि स्वर्ग मिल जाए या स्वर्ग जैसी जिंदगी हो जाए।
जिस ढंग का जीवन हम जीते हैं, उसी ढंग से स्वर्ग और नर्क अपने आसपास बना लेते हैं।
जो स्वर्ग की खोज में हों, उन्हें जीवन में गुरु और संत का महत्व समझना चाहिए।
जितनी देर हम संतों के साथ बैठेंगे, समझ लीजिए स्वर्ग के निकट हैं या स्वर्ग में ही हैं।
संत के तीन रूप माने गए हैं-
१..पहला सूरज हैं, जो सोए हैं उन्हें जगाते हैं।
२..दूसरा, वे हवा की भांति हैं,सोए हुए को हिलाने के लिए हवा की भूमिका में रहते हैं
और यदि आदमी तब भी न उठे
३..तीसरा संत पंछी की तरह शोर करेंगे कि अब तो उठ जाओ।
सूर्य, हवा और पंछी तीनों का कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता।
संत...........
जो भूले पड़े हैं, उन्हें भीतर स्मरण कराते हैं।
संत के सान्निध्य में समझ में आ जाता है कि स्वर्ग का अर्थ क्या है- जहां आप सहमत होना सीखें, वहीं स्वर्ग है।
जीवन सुंदर तब है, जब सबकुछ स्वीकार्य है और उसी के साथ शांति भी जीवन में उतर जाए।
इसलिए स्वर्ग प्राप्ति के लिए संतों का सान्निध्य बनाए रखें।
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