Pages

Monday, May 30, 2011

जब भी जीवन में निराशा आए, अपने पुराने सड़े-गले विचारों को त्यागें..

अनेक तरह से बलशाली लोग भी मानसिक दुर्बलता के शिकार पाए जाते हैं।

जब भी जीवन में निराशा आए, अपने पुराने सड़े-गले विचारों को त्यागें।

विचार भी लगातार बने रहने से बासी हो जाते हैं, इन्हें भी मांजना पड़ता है,

इनकी भी साफ-सफाई करनी पड़ती है। कुछ समय स्वयं को विचारशून्य रखना भी विचारों की साफ-सफाई है।

यह शून्यता गलत विचारों को गलाती है।

इसके बाद आने वाले विचार दिव्य और स्पष्ट होंगे।

विचारशून्य होने की स्थिति का नाम ध्यान है।

कुछ लोग काफी समय ध्यान की विधि ढूंढ़ने में लगा देते हैं।

कौन-सी विधि से ध्यान करें, इसमें ही उनके जीवन का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है।

थोड़ा समझें कि ध्यान की कोई विधि नहीं होती।

ध्यान एक ऐसा होश है, जो अपनी शून्यता से विचारों को धो देता है।

ताजे और प्रगतिशील विचार रोम-रोम में समाते हैं और उनके नियमित उपयोग की कला भी आ जाती है।

हर विधि एक रास्ता है, पर बाधा को हटाने के लिए उसे ही ध्यान मान लेना गलत होगा।

No comments:

Post a Comment