धर्म क्वांटिटी नहीं, क्वालिटी मांगता है। धर्म का क्वांटिटी से, संख्या से कोई सम्बन्ध नहीं है, धर्म का क्वालिटी से, गुणों से सम्बन्ध है। धर्म कहता है, जो दो रुपये चुराये वह भी चोर है और दो लाख रुपये चुराये, वह भी चोर है। चोरी छोटी–बड़ी हो सकती है लेकिन चोरी तो चोरी है, धर्म की अदालत में दोनों समान दण्ड के पात्र हैं। लेकिन तुम्हारी अदालत में दोनों की सजा भी अलग–अलग होगी। अदालत शब्द का अर्थ है :
अ आओ,
दा देओ,
ल लड़ों
और
त तबाह हो जाओ।
अर्थ हुआ आओ, देओ, लड़ो और तबाह हो जाओ।
अदालत ने बिना तबाह हुए आज तक कौन लौटा है।
अन्त:करण सबसे बड़ी अदालत है,
अन्त:करण की अदालत को साक्षी मानकर जीना है।
पाप मन के भीतर की बात है और अपराध मन के बाहर की बात है। मन में किसी की हत्या कर विचार उठा, यह पाप है और मन के विचार को शरीर से क्रियान्वित कर दिया, किसी की हत्या कर दी, यह अपराध है। अदालत पापी को नहीं पकड़ती। वह अपराधी को पकड़ती है। पाप जब अपराध बन जाता है, तब कानून तुम्हें पकड़ता है। लेकिन प्रभु की अदालत में, धर्म की अदालत में पाप भी अपराध है अपराध भी पाप है।
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