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Monday, May 30, 2011

बुजुर्गों की हमें जरूरत है......................

बुजुर्गों के रिटायर होने के बाद हम ऐसा मान लेते हैं

कि वे दुनिया के लिए बेकार हो गए हैं.

हमारे दिलों में ही नहीं हमारे घरों में भी उनके लिए जगह कम पड़ने लगती है.

मगर हम यह भूल जाते हैं कि उन्हें हमारी नहीं हमें उनकी जरूरत है.

हम उनके मुकाबले कहीं ज्यादा पैसे कमा सकते हैं,

ढ़ेर सारी सुविधाएं जुटा सकते हैं. दुनिया की तमाम चीजें खरीद सकते हैं

मगर घर में बुजुर्गों की उपस्थिति से मिलने वाला प्यार, संस्कार और अनुभव नहीं पा सकते.

उनकी नसीहतें हमें बेकार का उपदेश लगती हैं.

मगर हम उनमें छुपे प्यार और भावनाओं को नहीं समझ पा रहे हैं.

उनके नहीं होने से हमारे घरों से विनम्रता और संस्कार गायब होते जा रहे हैं.

उनके न होने से हम भूल गए हैं कि परिवार वाले घर में एक साथ बैठकर खाना खाते हैं.

हमें याद नहीं है कि घर में त्योहारों पर बड़े बच्चों के लिए मिठाइयां लाते हैं.

उनके न होने से हम छोटी-छोटी खुशियां बांटना भूल गए हैं.

हम अपने बच्चे की परवरिश कामवाली से करवाते हैं

और सोचते हैं कि बच्चों में अच्छे संस्कार पनपेंगे. ऐसा कैसे होगा?

कामवाली बाई के लिए आपके बच्चे की परवरिश सिर्फ एक काम है

और उसमें भावनायें जुड़ी नहीं होतीं.

लेकिन आपके घर के बुजुर्गों के लिए यह अपने परिवार और वंश की परंपराओं और संस्कारों को आगे बढ़ाने का अहम दायित्व है.

ऐसे में जब हम लोग अपने बच्चों में कम होती विनम्रता, संस्कार और सभ्यता की दुहाई दे रहे हैं

तो एक बार सोचना चाहिए कि हमें उनकी जरूरत है, उन्हें हमारी नहीं.......

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