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Monday, May 30, 2011

अजीब खेल है दुनिया तेरी सियासत का............

मैं खुल के हँस तो रहा हूँ गरीब होते हुए

वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुए

अजीब खेल है दुनिया तेरी सियासत का

मैं पैदलों से पिटा हूँ वज़ीर होते हुए

ये ख़ुशी की धुन का ख़याल रखते हैं...

परिंदे चुप नहीं रहते बंदी होते हुए

नये तरीक़े से मैंने ये जंग जीती है

कमान फेंक दी तरकश में तीर होते हुए

जिसे भी चाहिए मुझसे दुआएँ ले जाए

लुटा रहा हूँ मैं दौलत, गरीब होते...

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