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Monday, May 30, 2011

शुरुआत तो करिए...........

‘हम चलने के पहले ही अपनी बैठी हुई असफलता का दोष तीन चीजों में आरोपित कर देते हैं - भाग्य, ईश्वर और दुनिया।’

जो लोग दोष को स्वयं में ढूंढ़ने में सक्षम होंगे, वे सफलता के दृश्य देख सकेंगे।

बिल्कुल जरूरी नहीं है कि जो चल पड़ा, वह पहुंच ही जाएगा।

बोया हुआ बीज जरूरी नहीं है कि वृक्ष बन ही जाए।

जिसने कदम उठाया, उसे मंजिल मिलेगी ही।

यदि आगे नहीं बढ़ता है तो यह उसकी मर्जी है।

लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह असमर्थ है।

उठे हुए कदम की बूंद में सफलता का सागर छिपा है।

इसलिए कदम जरूर उठाइए।

कहां, कब और कैसे पहुंचेंगे, इसकी फिक्र छोड़िए।

शुरुआत तो करिए...........

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