जो काम आंखों के इशारे से हो सकता है, उसे हाथ के इशारे से कराना नादानी है
और जो काम हाथ के इशारे से हो सकता हो, उसे मुख से बोलकर कराना नादानी है।
जो काम धीरे से बोलकर हो सकता है, उसे क्रोध से चिल्लाकर कराना नादानी है।
इसी प्रकार जो काम हल्के से क्रोध के अभिनय से हो सकता है, उसे अधिकार के बलबूते हल करना पागलपन नहीं तो फिर क्या है?
और अभी तुम यही कर रहे हो, सारी दुनिया यही कर रही है।
यही एकमात्र कारण है कि संसार में इतनी वैमनस्यता, बिखराव, संघर्ष, दु:ख पनप रहे हैं।
किसी को जीतना है तो तलवार से नहीं, प्यार से जीतो, क्रोध से नहीं, क्षमा से जीतो।
यदि सामने वाला उग्र– स्वभावी है, प्रचंड–प्रकृति है, यदि वह आग है, आग का गोला बनता है
तो तुम्हें पानी बन जाना चाहिए, क्योंकि पानी ही आग पर काबू पा सकता है।
आग का समाधान जल है और क्रोध का समाधान क्षमा है
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