क्रोध तात्कालिक पागलपन है। क्रोध अहंकार के पीछे चलता है।
क्रोध और अहंकार सगे भाई हैं।
जिनसे तुम आदर की अपेक्षा करते हो यदि उनसे आदर नहीं मिलता तो तुम्हें क्रोध आ जाता है।
जिनसे तुम प्रेम मांगते हो, प्रेम की, फूलों की आकांक्षा रखते हो, यदि वे घृणा और कांटे थमा देते हैं तो तुम क्रोधित हो जाते हो।
अपेक्षा की उपेक्षा ही क्रोध है। जब–जब अपेक्षा की उपेक्षा होगी, तब–तब तुम्हें क्रोध अवश्य आएगा।
किसी से सम्मान की, प्रेम की, फूलों की अपेक्षा ही मत रखों तो उपेक्षा कौन कर सकता है
और जब उपेक्षा नहीं होगी तो क्रोध स्वत: ही नि:शेष हो जाएगा।
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