आज शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका का साधन रह गया है।
शिक्षा केवल आजीविका का साधन नहीं, जीवन की साधना भी है।
मनुष्य जब इस सृष्टि में जनम लेता है, तो पूर्ण रूप से मनुष्य नहीं होता।
जब तक मानव– चेतना में सत्संस्कारों का रोपण नहीं होगा, तब तक वह पूर्ण मनुष्यता नहीं पा सकता।
अच्छी शिक्षा व अच्छे संस्कारों से ही आदमी पूर्ण होता है।
शिक्षा वहीं परिपूर्ण होती है जो जीवन में उदात्त विचार, सुसंस्कार तथा जीवन जीने की कला सिखाती हो।
हमें नई पीढ़ी को, उसके परिवार, समाज, धर्म व राष्ट्र के प्रति क्या कर्त्तव्य है, इसका बोध कराना है।
आज स्थिति यह है कि एक बूढ़ा बाप अपने चार बच्चों की परवरिश तो कर सकता है, लेकिन चार बेटे मिलकर भी अपने बूढ़े मां–बाप की परवरिश नहीं कर पाते हैं।
याद रखना– जो अपने बूढ़े मां–बाप का नहीं हो सका, वह परमात्मा का हो जाए, असंभव है।
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